Tuesday, October 8, 2019

Ek aur


Milenge us paar.. Jahan sirf hum aur koi aur na ho..
Maddham chale hawa Jahan bheed ka koi shor na ho..
Surkh saadi me lipti dono baahe failaye ho tum khadi
hum dono ki nazdikiya itni ho ki gham-e-dil kisi oor na ho

Uzale Badalo ke beech.. Ek chota sa ghar ho..
Jahan dhool nahi bas teri bheeni sugandh ho..
Bas hum dono ho.. Sadiyo ke bichhade adhure
Aur ho tum bas meri.. Dur karti hume ye jaat ka dar na ho

Lage raho seene se ki dil ka dard kuch kam ho..
Bas jao meri rooh me jaise tum tum nahi hum ho..
Mere labo pe nishani do apne surkh hoto se..
Paas itne raho ki aur koi pyas ka gham na ho..

Dhadkano ko badhne do.. Aur hamara jism garm ho..
Lipte raho aise.. Jaise ghadhiyan bahot hi kam ho..
Do izazat mujhe apni sari tahzeeb bhulaane ka..
Dhadhkane tej to ho par duniya se koi dar na ho..

Ghul jao mujhme aur pighalo jaise tere sirf aur sirf hum ho.. 
Chhu lene do khudko.. Ki tab wo sama khatam na ho..
Baahon ko dalo meri bahon me aur Karo mera ehsaas..
tumhari siskiyan to ho.. Par is baar koi gam na ho..

Bikhra to sab rahe.. Par sametne ka man na ho..
Dekho meri aankho me, is doori ka koi bhram na ho 
dheemi ho jaye ghadi ki suiyan..Aur ghulte rahe hum
Tadapte karwate badle aur aankhe hamari bas nam na ho

Wahan sapna to ho par apne hatho se todne ka man na ho..
Aur koi rahe na rahe.. Bas tum raho tera gam na ho
Wo teri muskaan bhi wahi rahe jo tedhi si hai thodi
Himmat hum me ho itna ki kisi ko rulane ka dum na ho

Jaise toot gaye purane.. Ye waisa koi swapn na ho..
Hum karenge intezaar tumhara jaise agla koi janm na ho..
Is baar rukna mere liye meri jaan.. Hum aayenge tumhe lene
Ik baar karenge fir se koshish .. . Bas teri ummede kam na ho

Thursday, February 9, 2017

Hai raat ye kali gumsum..
Ab To parinde bhi so gaye..
Dil paas par dur hain hum 
Ye kaise andhere me kho gaye 

Neend aati nahi raat bhar..
Par sapne dikhne nahi hue kam..
Tum ho wahan jagi adhoori..
Yahan raat bhar karwate badalte hain hum..

Jane kaisi imtehaan hai ye hamari..
Jaan le lo to bhi ho shayad kam...
Ho jayenge ye bhi fasle khatam 
Do kadam tum badho .. Do kadam hum 

Friday, December 30, 2016

Gulabi

वो छोटी रात जाने इतनी बड़ी कैसे हो गयी
जब घड़ी की सुई तेज और धड़कने धीरे चलती थी
तब ओस की बूँदों पे फिसलते थे सपने
और दूर हो कर भी पास थे तुम कितने

तब किलकरियों से तेरे चैन आता था
तेरे आसुओं पे मेरा भी दिल भर आता था
जब तेरे साँस की गर्मी से धड़कने तेज होती थी
और अंगड़ायों पे तेरी सुबह की किरने निकलती थी

आज देखो मेरे बिस्तर को भी शिकायत है
इन उजले तकियों को तेरे ज़ुल्फो की चाहत है
मेरे चादर मुझसे तेरी गर्मी माँग रहे
और ये तौलिए तेरी खुश्बू बखान रहे

है उदास ये दरवाजा.. की अब इनकी ज़रूरत नही
मुझसे पहले तुझे इनकी खबर रही..
पर्दे हैं खोए से की किसी ने इन्हे बदला नही..
सच है इनकी गुलाबी रंग की मुझे कदर नही

आ जाओ मेरे पास कम से कम इनके लिए ही सही..
गर तुम भी हो वहाँ उदास इनके लिए ही सही..
आ जाओ और घुल जाओ मुझमे और करो पूरा सपना..
जहाँ गुआबी पर्दो वाला एक सुंदर सा घर हो अपना..




Wednesday, June 29, 2016

आधा मैं

मन से मैं आधा तुम हो। जो हूँ सबके सामने.. वो मैं आधा तुम हो। मेरे लब्ज़ ही नहीं मेरे कलाम भी.. जो शायर हूँ मैं, वो आधा तुम हो।
मैं मैं हूँ इस भीड़ में.. इस मैं में आधा तुम हो। जो ग़ज़ल है अन्दर मेरे.. उस आवाज़ की आधा तुम हो। आधा ग़ुरूर हो तुम मेरी.. और पूरी हो मेरी पहचान, ये जीवन मेरी तुम हो और मैं आजीवन आधा तुम हो।

Tuesday, January 6, 2015

Kami



khafa to nahi main tujhse par kuch shikayat dabi si hai... 
hai gulzar ye zamana par is dil me chamak ki kami si hai..
tu wahi hai ya koi aur ye nahi pata.. 
itni berukhi na kar ab mujhme hausalo ki kami si hai..

darta nahi main kisise par ab ye zindgi kuch thami si hai..
hain lakho chahne wale merebhi par shayad unme teri kami si hai..
bas ek tasveer hai tumhari jo shayad ishq me hai mujhse..
wo pyaari aankhe ab bhi mujh pe jami si hai..

aur kaun kahta hai tujhe main pa nahi sakta.. 
teri aankho ki gehraaiyon me ja nahi sakta.. 
khud se puch aur jhaank apne andar..
kyu meri aahat se teri saanse thami si hain..

kyu kyu kyu teri kami si hai..

Saturday, October 25, 2014

माँ





कुछ पुरानी यादों ने दिल पर दस्तक दिया..

वो उनकी बेचैनी मुझ से दूर जाने की याद आई..

खाने की हिदायत और वो पोटली मे बँधा कलेवा..

इस रेल गाड़ी के सफ़र मे माँ तेरी बड़ी याद आई..


वो तेरी नम आँखे वो तेरी झूठी हसी...

तेरे हाथो मे सीकुडे नोटों की बड़ी याद आई..

पापा से मेरे खर्चे की ज़िद और मेरे भाग के शादी करने का डर...

वो अपनी बहू लाने की ज़िद याद आई...


मेरे सारे गंदे कपड़े धोने की कोशिश..

वो तेरे हाथ के आलू के परांथों की बड़ी याद आई..

वो मेरे बालों मे तेल लगाने की हड़बड़ी..

और मेरे बॉल और छोटे करने की ज़िद याद आई..


वो तेरा मेरे वजन पे फिकर.. ऑफीस वालो के लिए तेरी गाली...

वो छोटी चीनी वाली रोटियों की याद आई..

सुबह तेरे चाय की दस्तक.. और ना उठने पे तेरी डाँट..

वो तेरी घी के हलवे की बड़ी याद आई..



वो तेरा आँचल मे मुझको छुपाना.. वो गालो पे पप्पी..

तेरे पल्लू मे बँधी मिस्री की डाली की बड़ी याद आई..

वो ठंड मे मेरे ना नहाने के ज़िद पे तेरी मार..

फिर बाहों की गर्मी और वो दुलार..

उन थप्पड़ो की बड़ी याद आई..



वो मेरे छुपे आँसुओं को पकड़ना.. और मेरे कम निवालो को समझना..

मेरी हँसी पे तेरी मुस्कान याद आई..

वो जाते जाते मेरे सर पे हाथ फेरना.. और मेरे जेब मे मेवे भरना..

तेरे मेरे लिये बचाए रुपयों की बड़ी याद आई..

इस रेल गाड़ी के सफ़र मे माँ तेरी बड़ी याद आई..

मैं



मैं ऐसा ना होता... अगर तुम ना आती..
तेरी हस्सी से अब होती है सुबह..
तेरे बाहों मे है रात कट जाती..
मैं ऐसा ना होता... अगर तुम ना आती..

बिखरा था मैं पहले.. अब सिमटा हूँ..
लड़खड़ाए से थे कदम.. अब संभाला हूँ..
इन सूनी रातो में.. ये तेरी याद दिल से नही जाती..
शायद मैं ऐसा ना होता... अगर तुम ना आती..

वो तेरा मुझ पर हक जताना ही काफ़ी था..
वो खुद को नये कपड़ो मे दिखाना ही काफ़ी था..
वो तेरी हस्सी मेरे बातो पे हैं जादू कर जाती..
शायद मैं ऐसा ना होता... अगर तुम ना आती..

वो तेरे सपनो को मुझसे जोड़ जाना..
वो मेरे लिए रोज सज के आना..
तेरी बाहों मे हैं मेरी धड़कने खो जाती..
शायद मैं ऐसा ना होता... अगर तुम ना आती..

मैं ऐसा ना होता... अगर तुम ना आती..
मैं ऐसा ना होता... अगर तुम ना आती..