वक़्त पिघलता रहा... जाने तुम क्या परखते रहे..
मैं रहा यहीं खड़ा.. जाने तुम कहाँ भटकते रहे..
फैली रही मेरी बाहें.. क्यूँ कोने मे तुम सिसकते रहे..
बस वक़्त पिघलता रहा... जाने तुम क्या परखते रहे..
मैं चलता रहा तेरी तन्हाइयों में.. जाने क्यूँ तुम मुझे झिड़कते रहे..
जो सुखी आधी बची थी रोटी मेरी.. उसे भी तुम बस कूतरते रहे..
बैठा था मैं तेरी ही गली में.. तुम जाने किस गली गुज़रते रहे..
बस वक़्त पिघलता रहा... जाने तुम क्या परखते रहे..
मैं करता रहा तेरे सजदे.. तुम दोस्तो संग हंसते रहे..
लतीफ़े मैंने लिखे तेरे आँखो पे ..तुम काज़ल जाने किसके लिए भरते रहे..
ग़ज़ले गाए मैने तेरे मुस्कान को.. तेरे कान जाने किसको तरसते रहे..
बस वक़्त पिघलता रहा... जाने तुम क्या परखते रहे..