मन से मैं आधा तुम हो।
जो हूँ सबके सामने.. वो मैं आधा तुम हो।
मेरे लब्ज़ ही नहीं मेरे कलाम भी..
जो शायर हूँ मैं, वो आधा तुम हो।
मैं मैं हूँ इस भीड़ में.. इस मैं में आधा तुम हो।
जो ग़ज़ल है अन्दर मेरे.. उस आवाज़ की आधा तुम हो।
आधा ग़ुरूर हो तुम मेरी.. और पूरी हो मेरी पहचान,
ये जीवन मेरी तुम हो और मैं आजीवन आधा तुम हो।